Poonam Sonchhatra
#1 सुनना ज़रूरी है
यद्यपि यह उसकी रुचि का विषय नहीं था
लेकिन फिर भी वह सुन रहा था
कभी-कभी वक्ता
कथ्य से अधिक महत्वपूर्ण होता है
ठीक वैसे ही
जैसे शब्दों से अधिक महत्वपूर्ण होता है
बात करने का लहजा
मंज़िल से अधिक ज़रूरी हैं बेहतर रास्ते
और ख़ूबसूरत रास्तों से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है
किसी अपने का साथ
संवेदनाएँ साक्षी हैं कि
सबसे उदास मौसम में ही
सबसे सुंदर और उम्मीद भरी
कविताएँ लिखी गई हैं
#2 मुक्ति
चरित्र के समस्त आयाम
केवल स्त्री के लिए ही परिभाषित हैं
मैं सिंदूर लगाना नहीं भूलती
और हर जगह स्टेटस में मैरिड लगा रखा है
जैसे यह कोई सुरक्षा चक्र हो
मैं डरती हूँ
जब कोई पुरुष मेरा एक क़रीबी दोस्त बनता है
मुझे बहुत सोच समझ कर
शब्दों का चयन करना पड़ता है
प्रेम का प्रदर्शन
और भावों की उन्मुक्त अभिव्यक्ति
सदैव मेरे चरित्र पर एक प्रश्न चिह्न लगाती है
मेरी बेबाकियाँ मुझे चरित्रहीन के समकक्ष ले जाती हैं
और मेरी उन्मुक्त हँसी
एक अनकहे आमंत्रण का
पर्याय मानी जाती है
मैं अभिशप्त हूँ
पुरुष की खुली सोच को स्वीकार करने के लिए
और साथ ही विवश हूँ
अपनी खुली सोच पर नियंत्रण रखने के लिए
मुझे शोभा देता है
ख़ूबसूरत लगना
स्वादिष्ट भोजन पकाना
और वह सारी ज़िम्मेदारियाँ
अकेले उठाना
जिन्हें साझा किया जाना चाहिए
जब मैं इस दायरे के बाहर सोचती हूँ
मैं कहीं खप नहीं पाती
स्त्री समाज मुझे जलन और हेय की
मिली-जुली दृष्टि से देखता है
और पुरुष समाज
मुझमें अपने अवसर तलाश करता है
मेरी सोच.. मेरी संवेदनाएँ
मेरी ही घुटन का सबब बनती हैं
मैं छटपटाती हूँ
क्या स्वयं की क़ैद से मुक्ति संभव है?
#3 जीवन साथी
हमारे छत्तीस में से बत्तीस गुण मिलते हैं
जब साथ खड़े होते हैं
तो जैसे राम और सीता
लेकिन हम बात नहीं करते
क्योंकि हमारे पास करने के लिए कोई बात नहीं है
हम जन्म-जन्मांतर के साथी
हम एक ही छत के नीचे
एक ही कमरे में
एक साथ ज़रूर रहते हैं
लेकिन अकेले-अकेले
एक आदर्श युगल की भूमिका में भी
हम इतने अजनबी हैं
कि जब साथ डिनर करने के लिए बाहर जाते हैं
तो जो बात
सबसे ज़्यादा परेशान करती है
वह यह
कि खाना आने तक का समय कैसे कटेगा?
हम सन्नाटों में डूबते जा रहे हैं
एक ही बिस्तर पर
कुछ सेंटीमीटर की दूरी पर लेटे
हम दो लोगों के मध्य
अनेक प्रकाशवर्षों की दूरी है
हम एक-दूसरे के गुरुत्वाकर्षण के दायरे से बाहर जा चुके हैं
हम एक-दूसरे की
अपेक्षाओं, इच्छाओं और मानदंड पर खरे नहीं उतरते
लेकिन हमारी ईमानदारी और ज़िम्मेदारी
हमें आपस में जोड़े रखती है
हम दोनों ही सही हैं
जो ग़लत इंसान के साथ रह रहे हैं
हर रोज़
हमारे भीतर
कुछ टूटता जाता है
हम पृथ्वी के दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े होकर
ख़ुद को हौले-हौले गलता हुआ देख रहे हैं
हमें एक-दूसरे की
सारी ज़रूरतों,
सारी समस्याओं का हल होना था
जिसकी अब कहीं कोई उम्मीद शेष नहीं है!
इन दिनों हम अक्सर यह सवाल दुहराते हैं
“जिनका कोई हल नहीं होता,
क्या वे चीज़ें ख़त्म हो जाती हैं…?”